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Hartalika Vrat Katha In Hindi.

 Har Talika Teej



भाद्रपद शुक्ल तृतीया को यह हरतलिका व्रत किया जाता है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए और अविवाहित युवतियां अपना मनचाहा वर की पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं।  इस व्रत में भगवान शंकर और माता पार्वती की बालू अथवा रेत की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करनी चाहिए। अपने घर को सुन्दर फूलों से और कदली स्तंभों से सजाना चाहिए। रात में मंगल गीत गाकर रात्रि जागरण करें। इस व्रत को करने वाली स्त्रियां माता पार्वती के समान सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते हुए शिवलोक को जाती हैं।

हरतालिका व्रत की कथा:



भगवान शंकर जी ने माता पार्वती से कहा कि एक बार तुमने हिमालय पर्वत पर जाकर मुझे पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। उसी कठिन तपस्या की वजह से नारद जी हिमालय के पास गए और उन्होंने हिमालय से कहा कि भगवान श्री विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं। नारद जी की बात सुनकर तुम्हारे पिता ने अपने मन में तुम्हारा विवाह भगवान विष्णु जी से करने का मन बना लिया। उसके बाद नारद जी भगवान श्री विष्णु जी के पास गए और कहा कि हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती का विवाह आपके साथ करने का निश्चय किया है। इसलिए आप इसकी स्वीकृति दें ताकि मैं उन्हें सूचित कर दूं। उधर नारद जी के जाने के बाद तुम्हारे पिता ने तुम्हे भगवान विष्णु जी के साथ विवाह निश्चिंत करने की बात बताई,यह बात सुनकर तुम्हे बहुत अधिक दुःख हुआ।



उसके बाद तुम्हे दुःखी देखकर तुम्हारी एक सहेली ने तुमसे तुम्हारे दुःख का कारण पूछा तब तुमने कहा कि मैं भगवान शंकर के साथ विवाह करने के लिए तपस्या कर रही हूं और मेरे पिता ने मेरा विवाह श्री विष्णु जी के साथ निश्चिंत कर दिया है। मैं इसी कारण से बहुत दुःखी हूं अतः तुम मेरी सहायता करो नहीं तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगी। सखी ने आपको समझाया कि तुम परेशान ना हो मैं तुम्हे एक ऐसे वन में ले चलूंगी जिसके बारे में तुम्हारे पिता को मालूम नहीं चल पाएगा। इस प्रकार तुम अपनी सखी की सहायता से घने जंगल में चली गईं। जब तुम्हारे पिता को तुम्हारे घर से जाने के बारे में पता चला तो इधर उधर बहुत ढूंढा और जब उन्हें तुम्हारा पता नहीं चला तो वो बहुत चिंतित हो गए क्योंकि उन्होंने नारद जी से तुम्हारा विवाह भगवान श्री विष्णु जी से करने का वचन दे दिया था। वचन भंग होने की चिंता से वह बहुत दुखी हो गए और उन्होंने सभी को यह बात बताई तो सभी लोग तुम्हारी खोज में लग गए। जंगल में तुम अपनी सखी के साथ सरिता किनारे की एक गुफा में तुम मेरे लिए तपस्या करने में लग गईं।

भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत का शिवलिंग संस्थापित करके व्रत किया। रात भर मेरी स्तुति के गीत रात्रि जागरण भी किया। तुम्हारी इस कठिन तपस्या के प्रभाव से मेरा आसान डोलने लगा और मेरी समाधि टूट गई। मुझे तुरंत तुम्हारे पूजन स्थल पर आना पड़ा। तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुमसे वर मांगने के लिए कहा। तब तुमने पति के रूप में मुझे मांग लिया और अपनी तपस्या का फल अनुसार तुमको मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार करना पड़ा। और फिर मैं ‘तथास्तु’ कह कर कैलाश पर्वत पर लौट आया। प्रातः होते ही जब तुम पूजा की सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारण कर रही थीं उसी समय अपने मित्र-बंधु व दरबारियों सहित तुम्हारे पिता हिमालय तुम्हें खोजते-खोजते वहां आ पहुंचे और तुम्हारी इस कठिन तपस्या का कारण पूछा। उस समय तुम्हारी दशा को देखकर पर्वतराज दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनकी आंखों में आंसू उमड़ पड़े। तब तुमने मुझे अपने पति के रूप में स्वीकार करने की बात उन्हे बता दी। उसके बाद हिमालय तुम्हे घर ले आए और फिर शास्त्र विधि से तुम्हारा विवाह मेरे साथ संपन्न हुआ।

भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने सुहागिन स्त्रियों और कुंवारी कन्याओं को मनोवांछित फल देता हूं। इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी निष्ठा और आस्था से करना चाहिए। हरितालिका  दो शब्दों से बना है, हर और तालिका। हर का अर्थ है हरण करना और तालिका का अर्थ है सखी। यह पर्व भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को मनाते हैं इसलिए इसे तीज  कहते हैं। इस वर्ष यह व्रत 9 सितंबर को मनाया जाएगा।



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Raksha Bandhan Vrat Katha In Hindi.

Raksha bandhan katha And Vidhi. रक्षा बंधन कथा एवं पूजा विधि।


श्रावणी पूर्णिमा के दो दिन पहले गोबर के पानी से रसोई, कमरे, दरवाजे, खिड़की और दरवाजों के बगल में छींटा दे दें। फिर पूर्णिमा के पहले दिन गोबर के छींटे के बाद चूने से पोत दें और गेरू से लीप दें। जिस समय कहानी सुनें तो लड्डू से जिमा दें और जल का छींटा देकर रोली और चावल, लड्डू के साथ मोली भी लगा दें। श्रावणी पूर्णिमा को सुबह हनुमान जी और पितरों को धोकते हैं और उनके ऊपर जल, रोली, मोली, चावल, फूल, प्रसाद, नारियल, राखी, दक्षिणा, धूपबत्ती, दीपक जलाकर सभी को धोंक देनी चाहिए और घर में ठाकुर जी का मंदिर हो तो उसकी भी पूजा करें।

खीर–पूरी बनाकर भाइयों को राखी बांध कर नारियल दें और औरतों को राखी बांधने के बाद पल्ले में मेवा बांध दें। भाइयों को चाहिए कि वह अपनी बहन से राखी बंधवाकर उन्हे उपहार और रुपए दें। बहनों को चाहिए कि वे अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांध कर उन्हे नारियल और मिठाई दें।

रक्षा बंधन की कहानी:


एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि हे देव! मुझे रक्षा बंधन की वह कथा सुनाइए जिससे मनुष्यों की प्रेतबाधा और दुःख दूर होता है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा– हे युधिष्ठिर मैं आपको एक ऐसी ही कथा सुनाता हूं आप ध्यान से सुनो! एक बार दानवों और देवताओं में युद्ध छिड़ गया और यह युद्ध लगातार बारह वर्ष तक चलता रहा। दानवों ने देवताओं को पराजित कर के इंद्र को भी हरा दिया। ऐसी स्थिति में देवताओं सहित इंद्र देव अमरावती चले गए। उधर दैत्यराज ने तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया। उसने कहा कि इंद्रदेव में ना आएं और कोई भी व्यक्ति देवताओं की पूजा ना करके सभी लोग मेरी ही पूजा करें।

इस प्रकार से सारे संसार में यज्ञ–वेद, पूजा, पाठ आदि समाप्त होने लगे। धर्म के नाश होने से देवताओं का बल खत्म होने लगा। यह देखकर एक दिन इंद्रदेव अपने गुरु वृहस्पति के पास जाकर उनके पैरों में गिरकर निवेदन करने लगे कि हे गुरुदेव! मुझे कोई उपाय बताएं जिससे कि मैं इन परिस्थितियों से बाहर निकल सकूं, क्योंकि ना तो मैं भाग ही सकता हूं और न ही युद्ध भूमि में टिक सकता हूं। ऐसी स्थिति में मुझे यहीं पर अपने प्राण देने होंगे।

बृहस्पति जी ने इंद्रदेव की बात सुनकर उन्हें रक्षा विधान करने के लिए कहा। इस प्रकार इंद्राणी ने श्रावणी पूर्णिमा के अवसर पर द्रिजों से स्वस्तिवाचन करवा कर रक्षा का संकल्प लिया और इंद्र की दाहिनी कलाई पर रक्षा सूत्र बांध कर युद्धभूमि में लड़ने को भेजा। इस प्रकार रक्षा बंधन के प्रभाव से दानव भाग खड़े हुए और इंद्रदेव को विजय प्राप्त हुई। राखी बांधने का आरंभ यहीं से शुरू हुआ।


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Halshashti Vrat Katha In Hindi

 Halshashti Vrat Katha


हलषष्ठी:

हल षष्ठी को भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था। यह व्रत भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को किया जाता है। हल और मूसल बलराम जी का मुख्य शस्त्र है, इसीलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है। इस त्योहार का नाम उन्ही के नाम पर रखा गया है।

हमारे देश के पूर्वी जिलों में इसे ललही छठ भी कहा जाता है। इस दिन महुवे की दातून करने का विधान है। इस व्रत में हल से जोता हुआ अन्न तथा फल का प्रयोग नहीं किया जाता है। इस दिन गाय के दूध और दही का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

विधि:

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें उसके बाद जमीन को लीपकर एक छोटा सा तालाब बनाएं, जिसमें झरबेरी, पलाश और गूलर की एक–एक शाखा बनाकर तालाब में गाड़ दें। हरछठ में इसी की पूजा की जाती है। इस पूजा में सतनजा ( गेहूं, चना, मक्का, धान, ज्वार, बाजरा, जौ) आदि का भुना हुआ लावा चढ़ाया जाता है। कहीं–कहीं पंच मेवा भी चढ़ाई जाती है। तिन्नी का चावल, दही और महुआ इसमें विशेषकर चढ़ाया जाता है। इस व्रत में दही और तिन्नी का चावल तथा नारी का साग खाया जाता है। इस व्रत में हल से जोता हुआ कुछ भी नहीं खाते हैं।

हल षष्ठी व्रत कथा:

हल षष्ठी की कहानी इस प्रकार है एक गर्भवती ग्वालिन को प्रसव पीड़ा हो रही थी क्योंकि उसका प्रसव का समय समीप था, परन्तु उसका दही और मक्खन बेचने के लिए रखा था और उसके घर में कोई भी नहीं था जो कि दही और मक्खन को लेकर बेचने जा सके। उसने सोचा कि यदि बालक का जन्म हो गया तो उसका दही और मक्खन नहीं बिक पाएगा। यह सोच कर ग्वालिन जैसे–तैसे उठी और सिर पर दही–मक्खन की मटकी रखकर बेचने के लिए चल पड़ी। चलते–चलते उसकी प्रसव पीड़ा बढ़ गई तो वह झरबेरी की झाड़ी में ओट में बैठ गई और उसने वहीं पर एक बालक को जन्म दिया।

चूंकि ग्वालिन का यह पहला पुत्र था तो उसे बिल्कुल भी अक्ल नहीं थी और ना ही उसे कोई बताने वाला था। अल्हड़ ग्वालिन ने बच्चे को कपड़े में लपेटकर वहीं पर लिटा दिया और खुद दही–मक्खन की मटकी उठाकर आगे चल दी। उस दिन हर छठ का दिन था। वैसे तो उसका दही और मक्खन गाय और भैंस का मिला जुला था लेकिन उसने बेचते समय सबको यही बताया कि यह सिर्फ भैंस का दही और मक्खन है। इसलिए उसका दही और मक्खन जल्दी ही बिक गया। अब ग्वालिन को अपने पुत्र की याद आई तो वह जल्दी से उस स्थान पर पहुंची जहां पर उसने बालक को छिपाया था।

जिस स्थान पर ग्वालिन ने बच्चे को छिपाया था वहां पर एक किसान हल चला रहा था। किसान के बैल बिदक कर खेत की मेंढ़ पर जा चढ़े और किसान के हल की नोंक बच्चे के पेट में लग गई जिसकी वजह से बच्चे का पेट फट गया और उसकी मृत्यु हो गई। किसान ने जल्दी से झरबेरी के कांटों से बच्चे के पेट में टांके लगा कर उसको वहीं छोड़कर चला गया। ग्वालिन जब वहां पहुंची तो उसने अपने अपने बच्चे को मरा हुआ पाया तो उसने सोचा कि यह उसके गलत कर्मों का दंड है क्योंकि उसने हर छठ व्रत करने वाली स्त्रियों को गाय का दही और मक्खन बेचकर उनका व्रत भंग किया है, शायद उसी का दंड मुझे मिला है।

तभी उसकी पड़ोसन ने यह देखा तो उसने ग्वालिन से कहा कि तुम सबके घर जाकर गाय का दही और मक्खन वापस ले आओ और भैंस का दही और मक्खन दे आओ। तब वह ग्वालिन सबके घर जाकर सारी सच्चाई बताकर गाय का दही और मक्खन वापस लेकर भैंस का दही और मक्खन दे आई। पहले तो सारी स्त्रियां नाराज हुई लेकिन फिर सबने उसकी सच्चाई से प्रभावित होकर उसको माफ कर दिया और उसको आशीष दिया कि तुम्हारा पुत्र स्वस्थ हो जाए। ग्वालिन जब खेत में वापस लौट कर आई तो उसने देखा कि उसका पुत्र जीवित हो गया है।

उसी दिन से ग्वालिन ने प्रण लिया कि अब वह कभी भी झूठ नहीं बोलेगी। सभी के आशीर्वाद से ग्वालिन का पुत्र जीवित हो गया। हल षष्ठी माता सभी पर अपनी दया बनाए रखें।

समाप्त🙏

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Kajri Teej Vrat Katha In Hindi.

 Kajri Teej Vrat Katha


भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज मनाई जाती है। यह तीज ख़ासतौर पर मिर्जापुर और बनारस जिले में एक विशेष उत्सव के रूप में मनाई जाती है। प्रायः लोग नावों में चढ़कर कजरी गीत गाते हैं। यह वर्षा ऋतु का एक विशेष राग होता है। ब्रज के मल्हारों की भांति मिर्जापुर और बनारस का यह प्रमुख वर्षागान माना जाता है। वैसे तो यह पूरे भारत में मनाया जाता है। इस दिन लोग झूला डालकर झूलते हैं। कजरी तीज का व्रत सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु, संतान प्राप्ति और अखण्ड सौभाग्यवती होने के लिए रखती हैं।

इस दिन हिंदू महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और माता पार्वती की पूरे विधि-विधान से पूजा करती हैं। कजरी तीज को सातूड़ी तीज, कजली तीज और बूढ़ी तीज भी कहा जाता है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रंगार करती हैं और पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान शिव जी और माता पार्वती सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। इतना ही नहीं, कुवांरी लड़कियां भी कजरी तीज का व्रत रखती हैं, ताकि विवाह में आ रही रुकावटें दूर हो जाएं।

कजरी तीज व्रत कथा:


कजरी तीज व्रत की वैसे तो कई कथाएं प्रचलित हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, साहूकार के सात बेटों में सबसे छोटा बेटा अपाहिज था और उसे वेश्यालय जाने की बुरी आदत थी। वहीं उसकी पत्नी पतिव्रता नारी थी। वह हमेशा पति की सेवा में लगी रहती थी। वह पति के कहने पर उसे कंधे पर बैठा कर वेश्यालय तक भी ले जाती थी। एक बार जब वह पति को वेश्यालय में छोड़ने के बाद वहीं पास की नदी कपास बैठकर पति के वापस आने का इंतजार करने लगी।

तभी मूसलाधार वर्षा हुई और नदी बढ़ने लगी। तभी इस नदी से एक आवाज आई कि आवतारी जावतारी दोना खोल के पी, पिया प्यालरी होय। यह सुनते ही उसने देखा कि दूध से भरा हुआ एक दोना नदी में तैरता हुआ उसी को ओर आ रहा है। उसने उस दोने का सारा दूध पी लिया। इसके बाद भगवान की कृपा से उसका पति वेश्याओं को छोड़ कर उससे प्रेम करने लगा। इसके लिए साहूकार की पत्नी नें भगवान को खूब धन्यवाद दिया और नियमपूर्वक कजरी का व्रत पूजन करने लगी।


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Budhwar Vrat Katha In Hindi:

बुधवार व्रत कथा

समतापुर नगर में मधुसूदन नाम का एक व्यक्ति रहता था।  वह बहुत ही धनवान था।  मधुसूदन का शादी बलरामपुर नगर की एक सुंदर लड़की संगीता से हुई थी।  एक बार की बात है मधुसूदन अपनी पत्नी संगीता को विदा कराने के लिए अपनी ससुराल गया था उस दिन बुधवार था।  जब मधुसूदन ने अपनी पत्नी को विदा करने की बात कही तो उसके सास–ससुर ने कहा कि बेटा, आज बुधवार का दिन है और आज के दिन किसी भी शुभ कार्य के लिए यात्रा करना उचित नहीं है। मधुसूदन को इन बातों पर विश्वास नहीं था इसलिए उसने उनकी बात नहीं मानी और पत्नी को विदा कराकर चल दिया।

दोनों बैलगाड़ी से जा रहे थे।  दो कोस की यात्रा के बाद उनकी बैलगाड़ी का एक पहिया टूट गया तो उन दोनों ने पैदल ही यात्रा शुरू कर दी।  रास्ते में एक जगह पर संगीता को बहुत जोर से प्यास लगने लगी तो मधुसूदन ने उसको एक पेड़ के नीचे बैठा दिया और स्वयं पानी लेने चला गया।  थोड़ी देर बाद जब वह पानी लेकर वापस आया तो आश्चर्य चकित रह गया।  उसने देखा कि उसकी पत्नी के पास हुबहू उसी की शक्ल का एक व्यक्ति बैठा हुआ है।  दोनों हंस–हंस का बातें कर रहे थे।  संगीता ने जब मधुसूदन को देखा तो वह भी हैरान रह गई।  वह दोनों में अंतर नहीं कर पा रही थी।
मधुसूदन ने उस व्यक्ति से पूछा कि तुम कौन हो और मेरी पत्नी के पास क्यों बैठे हो? मधुसूदन की बात सुनकर उस व्यक्ति ने जवाब दिया कि अरे भाई! यह मेरी पत्नी संगीता है और मैं आज ही इसे विदा कराकर लाया हूं।  लेकिन तुम कौन हो? और मुझसे ऐसा प्रश्न क्यों कर रहे हो?  मधुसूदन ने कहा कि यह मेरी पत्नी संगीता है, मैं इसे पेड़ के नीचे बैठाकर पानी लेने के लिए गया था तुम जरूर कोई चोर या ठग हो जो ऐसी बातें कर रहे हो।  इसपर दूसरा व्यक्ति बोला कि अरे भाई! झूठ तो तुम बोल रहे हो मैं संगीता को प्यास लगने पर पानी लेने गया था और मैने पानी लाकर उसे पिला दिया है।  इस प्रकार दोनों ही एक दूसरे को झूठा बताकर आपस में लड़ने लगे।

दोनों को लड़ता हुआ देखकर वहां पर भीड़ इक्कठा हो गई।  इतने में नगर के कुछ सिपाही भी वहां आ गए।  सिपाही उन दोनों को पकड़कर राजा के पास ले गए।  सारी कहानी सुनने के बाद राजा भी कोई फैसला नहीं कर पाए।  उन्होंने दोनों को कारागार में डाल देने का आदेश दिया।  तभी वहां पर आकाशवाणी हुई कि हे मधुसूदन! तूने संगीता के माता और पिता की बात नहीं मानी और बुधवार के दिन अपनी ससुराल से प्रस्थान किया है।  इसी वजह से भगवान बुधदेव महाराज तुझसे नाराज हैं और उनके प्रकोप से ही यह सब हो रहा है।  मधुसूदन ने भगवान बुधदेव से प्रार्थना की कि हे भगवान बुधदेव मुझे क्षमा कर दीजिए मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है।  अब मैं भविष्य में कभी भी बुधवार को कोई यात्रा नहीं करूंगा।  मैं सदैव बुधवार को आपका व्रत और पूजन किया करूंगा।  
मधुसूदन के प्रार्थना करने पर भगवान बुधदेव ने उसे क्षमा कर दिया।  भगवान बुधदेव की अनुकम्पा से प्रभावित हो कर राजा ने उन दोनों को कारागार से मुक्त कर सम्मानपूर्वक विदा कर दिया।  थोड़ी देर चलन  के बाद उनकी बैलगाड़ी भी मिल गई और उसके पहिए भी जुड़ गए थे।  मधुसूदन और संगीता दोनो बैलगाड़ी में बैठकर समतापुर की ओर चल दिये।  दोनों बुधवार का व्रत करते हुए सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे।  बुधदेव महाराज की कृपा से उनके यहां खुशियां बरसने लगीं।  जो कोई भी स्त्री अथवा पुरुष विधिवत बुधवार का व्रत और पूजन करता है और बुधवार की कथा सुनता है भगवान बुधदेव उनके सभी कष्ट दूर करके उनका जीवन खुशियों से भर देते हैं।
बोलो भगवान बुधदेव महाराज की जय!
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Awanla Navmi Vrat Katha In Hindi

 


आवंला नवमी व्रत कथा:

पूरे उत्तर व मध्य भारत में आवंला नवमी का खास महत्व है। महिलाएं संतान प्राप्ति और उसकी मंगलकामना के लिए यह व्रत पूरी निष्ठा के साथ करती हैं। आइए आंवला नवमी की कथा और पूजा विधि के बारे में जानते हैं।

काशी नगर में एक धर्मात्मा वैश्य रहता था। उसके कोई संतान नहीं थी। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराए लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने मना कर दिया। परंतु उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी, इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया तथा लड़की की आत्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी।




इस पर वैश्य बोला कि ब्राह्मण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है। इसलिए तू गंगा नदी पर जाकर भगवान का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तुझे इस पाप और कष्ट से छुटकारा मिल सकता है। वैश्य की पत्नी पश्चाताप करने लगी और रोग से मुक्ति पाने के लिए मां गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी। जिस पर महिला ने गंगा माता के बताए अनुसार इस तिथि को आंवला वृक्ष का पूजन कर आंवला गृहण किया था और वह रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे संतान की प्राप्ति हुई। तभी से इस व्रत को करने का प्रचलन शुरू हुआ। तब से लेकर आज तक यह परम्परा चली आ रही है।

आंवला नवमी के दिन नहाने के पानी में आंवले का रस मिलाकर नहाएं, ऐसा करने से आपके आस–पास जितनी भी नकरात्मक ऊर्जा होगी वह समाप्त हो जाएगी। सकारात्मकता और पवित्रता में वृद्धि होगी। फिर आंवले के पेड़ और देवी लक्ष्मी का पूजन करें। 


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Chandra Chath Ki Katha

 Chandra Chath Vrat Pooja Vidhi and Katha.


चन्द्र छठ:

चन्द्र छठ भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को चन्द्र छठ और हल षष्ठी मनाई जाती है। इसका व्रत कुंवारी लड़कियां करती हैं और इस व्रत में कुछ भी खाया पिया नहीं जाता है।

चन्द्र छठ का व्रत और पूजा विधि:

इस व्रत को करने की विधि इस प्रकार से है–एक पटरे पर जल का लोटा रखकर उस पर रोली छिड़क कर सात टीके लगाए जाते हैं। एक गिलास में गेहूं रखकर उसके ऊपर अपनी श्रद्धा अनुसार रुपए रख दें। फिर हाथ में गेहूं के सात दाने लेकर कहानी सुनते हैं। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर गेहूं और रूपये ब्राम्हण को दान देना चाहिए। चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद लड़कियां व्रत का पालन करें।

चंद्र छठ की कथा:

किसी नगर में एक सेठ और सेठानी रहते थे। सेठानी मासिक धर्म के समय में भी बर्तनों को हाथ लगाया करती थी। कुछ समय बाद सेठ और सेठानी की मृत्यु हो गई। मृत्यु के साथ अगले जनम में सेठ को बैल और सेठानी को कुतिया की योनि प्राप्त हुई। सेठ और सेठानी दोनों अपने पुत्र के घर की रखवाली करते थे। सेठ के श्राद वाले दिन बहू ने खीर बनाई और किसी काम को करने के लिए वह बाहर चली गई इतने में एक चील सांप को लेकर जा रही थी वह सांप खीर के बर्तन में गिर गया। कुतिया यह सब देख रही थी लेकिन बहू को खीर में सांप गिरने के बारे में कुछ पता नहीं था।

कुतिया ने सोचा कि अगर यह खीर ब्राह्मण खा लेंगे तो वह सब मर जायेंगे। उसने सोचा कि मुझे कुछ ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे कि बहू वह खीर फेंक दे। जब बहू वापस लौट कर आई तो उसे देखकर कुतिया ने खीर के भगोने में मुंह डाल दिया, बहू को बहुत गुस्सा आया और उसने कुतिया को जलती हुई लकड़ी से बहुत मारा जिसकी वजह से कुतिया की रीढ़ की हड्डी टूट गई। बहू ने वह खीर फेंक दी और फिर ब्राह्मणों के लिए दूसरी खीर बनाई।

सभी ब्राह्मणों ने भरपेट भोजन किया और आशीर्वाद देते हुए चले गए। बहू ने गुस्से की वजह से कुतिया को जूठन तक नहीं दी। रात में जब सब सो गए तो बैल और कुतिया आपस बातें करने लगे। कुतिया ने कहा कि आज तो तुम्हारा श्राद्ध था, तुम्हे तो खूब पकवान खाने को मिले होंगे। कुतिया ने कहा कि मुझे तो आज कुछ भी खाने को नहीं मिला उल्टे आज मेरी बहुत पिटाई हुई है। बैल के पूछने पर कुतिया ने खीर और उसमे सांप के गिरने की सारी बात बैल को बता दी। बैल ने कहा कि आज तो मैं भी भूखा हूं कुछ भी खाने को नहीं मिला। आज तो और दिनों से ज्यादा काम करना पड़ा। बेटा और बहू ने दोनों की सारी बातें सुन ली। बेटे ने पंडितों को बुलवा कर उनसे अपने माता पिता की योनि के बारे में जानकारी ली कि वे दोनों किस योनि में गए हैं। पंडितों ने बताया कि उसके पिता बैल योनि में और माता कुतिया योनि में गए हैं।

लड़के को सारी बात समझ में आ गई और उसने बैल और कुतिया को भरपेट भोजन कराया। उसने पंडितों से उनके योनि से छूटने का उपाय भी पूछा। पंडितों ने बताया कि भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को जब कुंवारी लड़कियां चंद्रमा को अर्घ्य देने लगें तो ये दोनों उस अर्घ्य के नीचे खड़े हो जाएं तो इनको इस योनि से छुटकारा मिल जाएगा। तुम्हारी मां ऋतुकाल में सारे बर्तनों को हाथ लगाती थी इसी कारण उसे यह योनि मिली थी। उसके बाद आने वाली चंद्र षष्ठी को लड़के ने पंडित की बताई गई बातों का पालन किया, जिससे उसके माता पिता को कुतिया और बैल की योनि से छुटकारा मिल गया।


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