Kajri Teej Vrat Katha
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज मनाई जाती है। यह तीज ख़ासतौर पर मिर्जापुर और बनारस जिले में एक विशेष उत्सव के रूप में मनाई जाती है। प्रायः लोग नावों में चढ़कर कजरी गीत गाते हैं। यह वर्षा ऋतु का एक विशेष राग होता है। ब्रज के मल्हारों की भांति मिर्जापुर और बनारस का यह प्रमुख वर्षागान माना जाता है। वैसे तो यह पूरे भारत में मनाया जाता है। इस दिन लोग झूला डालकर झूलते हैं। कजरी तीज का व्रत सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु, संतान प्राप्ति और अखण्ड सौभाग्यवती होने के लिए रखती हैं।
इस दिन हिंदू महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और माता पार्वती की पूरे विधि-विधान से पूजा करती हैं। कजरी तीज को सातूड़ी तीज, कजली तीज और बूढ़ी तीज भी कहा जाता है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रंगार करती हैं और पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान शिव जी और माता पार्वती सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। इतना ही नहीं, कुवांरी लड़कियां भी कजरी तीज का व्रत रखती हैं, ताकि विवाह में आ रही रुकावटें दूर हो जाएं।
कजरी तीज व्रत कथा:
कजरी तीज व्रत की वैसे तो कई कथाएं प्रचलित हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, साहूकार के सात बेटों में सबसे छोटा बेटा अपाहिज था और उसे वेश्यालय जाने की बुरी आदत थी। वहीं उसकी पत्नी पतिव्रता नारी थी। वह हमेशा पति की सेवा में लगी रहती थी। वह पति के कहने पर उसे कंधे पर बैठा कर वेश्यालय तक भी ले जाती थी। एक बार जब वह पति को वेश्यालय में छोड़ने के बाद वहीं पास की नदी कपास बैठकर पति के वापस आने का इंतजार करने लगी।
तभी मूसलाधार वर्षा हुई और नदी बढ़ने लगी। तभी इस नदी से एक आवाज आई कि आवतारी जावतारी दोना खोल के पी, पिया प्यालरी होय। यह सुनते ही उसने देखा कि दूध से भरा हुआ एक दोना नदी में तैरता हुआ उसी को ओर आ रहा है। उसने उस दोने का सारा दूध पी लिया। इसके बाद भगवान की कृपा से उसका पति वेश्याओं को छोड़ कर उससे प्रेम करने लगा। इसके लिए साहूकार की पत्नी नें भगवान को खूब धन्यवाद दिया और नियमपूर्वक कजरी का व्रत पूजन करने लगी।
Our Bhajan Website : maakonaman.com