Halshashti Vrat Katha
![](https://hindikathayen.files.wordpress.com/2021/08/1596872815-7588.jpg?w=740)
हलषष्ठी:
हल षष्ठी को भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था। यह व्रत भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को किया जाता है। हल और मूसल बलराम जी का मुख्य शस्त्र है, इसीलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है। इस त्योहार का नाम उन्ही के नाम पर रखा गया है।
हमारे देश के पूर्वी जिलों में इसे ललही छठ भी कहा जाता है। इस दिन महुवे की दातून करने का विधान है। इस व्रत में हल से जोता हुआ अन्न तथा फल का प्रयोग नहीं किया जाता है। इस दिन गाय के दूध और दही का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
विधि:
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें उसके बाद जमीन को लीपकर एक छोटा सा तालाब बनाएं, जिसमें झरबेरी, पलाश और गूलर की एक–एक शाखा बनाकर तालाब में गाड़ दें। हरछठ में इसी की पूजा की जाती है। इस पूजा में सतनजा ( गेहूं, चना, मक्का, धान, ज्वार, बाजरा, जौ) आदि का भुना हुआ लावा चढ़ाया जाता है। कहीं–कहीं पंच मेवा भी चढ़ाई जाती है। तिन्नी का चावल, दही और महुआ इसमें विशेषकर चढ़ाया जाता है। इस व्रत में दही और तिन्नी का चावल तथा नारी का साग खाया जाता है। इस व्रत में हल से जोता हुआ कुछ भी नहीं खाते हैं।
हल षष्ठी व्रत कथा:
हल षष्ठी की कहानी इस प्रकार है एक गर्भवती ग्वालिन को प्रसव पीड़ा हो रही थी क्योंकि उसका प्रसव का समय समीप था, परन्तु उसका दही और मक्खन बेचने के लिए रखा था और उसके घर में कोई भी नहीं था जो कि दही और मक्खन को लेकर बेचने जा सके। उसने सोचा कि यदि बालक का जन्म हो गया तो उसका दही और मक्खन नहीं बिक पाएगा। यह सोच कर ग्वालिन जैसे–तैसे उठी और सिर पर दही–मक्खन की मटकी रखकर बेचने के लिए चल पड़ी। चलते–चलते उसकी प्रसव पीड़ा बढ़ गई तो वह झरबेरी की झाड़ी में ओट में बैठ गई और उसने वहीं पर एक बालक को जन्म दिया।
चूंकि ग्वालिन का यह पहला पुत्र था तो उसे बिल्कुल भी अक्ल नहीं थी और ना ही उसे कोई बताने वाला था। अल्हड़ ग्वालिन ने बच्चे को कपड़े में लपेटकर वहीं पर लिटा दिया और खुद दही–मक्खन की मटकी उठाकर आगे चल दी। उस दिन हर छठ का दिन था। वैसे तो उसका दही और मक्खन गाय और भैंस का मिला जुला था लेकिन उसने बेचते समय सबको यही बताया कि यह सिर्फ भैंस का दही और मक्खन है। इसलिए उसका दही और मक्खन जल्दी ही बिक गया। अब ग्वालिन को अपने पुत्र की याद आई तो वह जल्दी से उस स्थान पर पहुंची जहां पर उसने बालक को छिपाया था।
जिस स्थान पर ग्वालिन ने बच्चे को छिपाया था वहां पर एक किसान हल चला रहा था। किसान के बैल बिदक कर खेत की मेंढ़ पर जा चढ़े और किसान के हल की नोंक बच्चे के पेट में लग गई जिसकी वजह से बच्चे का पेट फट गया और उसकी मृत्यु हो गई। किसान ने जल्दी से झरबेरी के कांटों से बच्चे के पेट में टांके लगा कर उसको वहीं छोड़कर चला गया। ग्वालिन जब वहां पहुंची तो उसने अपने अपने बच्चे को मरा हुआ पाया तो उसने सोचा कि यह उसके गलत कर्मों का दंड है क्योंकि उसने हर छठ व्रत करने वाली स्त्रियों को गाय का दही और मक्खन बेचकर उनका व्रत भंग किया है, शायद उसी का दंड मुझे मिला है।
तभी उसकी पड़ोसन ने यह देखा तो उसने ग्वालिन से कहा कि तुम सबके घर जाकर गाय का दही और मक्खन वापस ले आओ और भैंस का दही और मक्खन दे आओ। तब वह ग्वालिन सबके घर जाकर सारी सच्चाई बताकर गाय का दही और मक्खन वापस लेकर भैंस का दही और मक्खन दे आई। पहले तो सारी स्त्रियां नाराज हुई लेकिन फिर सबने उसकी सच्चाई से प्रभावित होकर उसको माफ कर दिया और उसको आशीष दिया कि तुम्हारा पुत्र स्वस्थ हो जाए। ग्वालिन जब खेत में वापस लौट कर आई तो उसने देखा कि उसका पुत्र जीवित हो गया है।
उसी दिन से ग्वालिन ने प्रण लिया कि अब वह कभी भी झूठ नहीं बोलेगी। सभी के आशीर्वाद से ग्वालिन का पुत्र जीवित हो गया। हल षष्ठी माता सभी पर अपनी दया बनाए रखें।
समाप्त🙏