Raksha Bandhan Vrat Katha In Hindi. Hindi Kathayen August 13, 2023 Vrat Katha Raksha bandhan katha And Vidhi. रक्षा बंधन कथा एवं पूजा विधि। श्रावणी पूर्णिमा के दो दिन पहले गोबर के पानी से रसोई, कमरे, दरवाजे, खिड़की और दरवाजों के बगल में छींटा दे दें। फिर पूर्णिमा के पहले दिन गोबर के छींटे के बाद चूने से पोत दें और गेरू से लीप दें। जिस समय कहानी सुनें तो लड्डू से जिमा दें और जल का छींटा देकर रोली और चावल, लड्डू के साथ मोली भी लगा दें। श्रावणी पूर्णिमा को सुबह हनुमान जी और पितरों को धोकते हैं और उनके ऊपर जल, रोली, मोली, चावल, फूल, प्रसाद, नारियल, राखी, दक्षिणा, धूपबत्ती, दीपक जलाकर सभी को धोंक देनी चाहिए और घर में ठाकुर जी का मंदिर हो तो उसकी भी पूजा करें। खीर–पूरी बनाकर भाइयों को राखी बांध कर नारियल दें और औरतों को राखी बांधने के बाद पल्ले में मेवा बांध दें। भाइयों को चाहिए कि वह अपनी बहन से राखी बंधवाकर उन्हे उपहार और रुपए दें। बहनों को चाहिए कि वे अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांध कर उन्हे नारियल और मिठाई दें। रक्षा बंधन की कहानी: एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि हे देव! मुझे रक्षा बंधन की वह कथा सुनाइए जिससे मनुष्यों की प्रेतबाधा और दुःख दूर होता है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा– हे युधिष्ठिर मैं आपको एक ऐसी ही कथा सुनाता हूं आप ध्यान से सुनो! एक बार दानवों और देवताओं में युद्ध छिड़ गया और यह युद्ध लगातार बारह वर्ष तक चलता रहा। दानवों ने देवताओं को पराजित कर के इंद्र को भी हरा दिया। ऐसी स्थिति में देवताओं सहित इंद्र देव अमरावती चले गए। उधर दैत्यराज ने तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया। उसने कहा कि इंद्रदेव में ना आएं और कोई भी व्यक्ति देवताओं की पूजा ना करके सभी लोग मेरी ही पूजा करें। इस प्रकार से सारे संसार में यज्ञ–वेद, पूजा, पाठ आदि समाप्त होने लगे। धर्म के नाश होने से देवताओं का बल खत्म होने लगा। यह देखकर एक दिन इंद्रदेव अपने गुरु वृहस्पति के पास जाकर उनके पैरों में गिरकर निवेदन करने लगे कि हे गुरुदेव! मुझे कोई उपाय बताएं जिससे कि मैं इन परिस्थितियों से बाहर निकल सकूं, क्योंकि ना तो मैं भाग ही सकता हूं और न ही युद्ध भूमि में टिक सकता हूं। ऐसी स्थिति में मुझे यहीं पर अपने प्राण देने होंगे। बृहस्पति जी ने इंद्रदेव की बात सुनकर उन्हें रक्षा विधान करने के लिए कहा। इस प्रकार इंद्राणी ने श्रावणी पूर्णिमा के अवसर पर द्रिजों से स्वस्तिवाचन करवा कर रक्षा का संकल्प लिया और इंद्र की दाहिनी कलाई पर रक्षा सूत्र बांध कर युद्धभूमि में लड़ने को भेजा। इस प्रकार रक्षा बंधन के प्रभाव से दानव भाग खड़े हुए और इंद्रदेव को विजय प्राप्त हुई। राखी बांधने का आरंभ यहीं से शुरू हुआ।Our Bhajan Website: maakonaman.com Share: Email ThisBlogThis!Share to XShare to FacebookShare to Pinterest