बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गांव गोकुलपुर में एक निर्धन किसान अपने परिवार के साथ बहुत गरीबी में अपना जीवनयापन करता था। उसका सबसे छोटा बेटा श्याम बचपन से ही भगवान श्री कृष्ण की भक्ति करता था। उसका मन खेलकूद में नहीं लगता था। जहां बच्चे पेड़ पर चढ़कर आम तोड़ते या नदी में तैरते, वहीं श्याम मन्दिर बैठकर घंटों भगवान की मूर्ति से बातें करता रहता था। जैसे बच्चे अपनी मां से बातें करते हैं वैसे ही श्याम भगवान से अपने दिल की सारी बातें करता था। बच्चे जैसे अपनी मां से रूठ जाते हैं वैसे ही वह श्री कृष्ण भगवान से रूठ जाता था और फिर उन्हें मनाता था।
श्याम के इस तरह के व्यवहार के कारण कुछ लोग उसको पागल समझते थे और कुछ लोग सोचते थे कि अभी वह बच्चा है इसलिए ऐसी हरकतें करता है। श्याम किसी की बात पर ध्यान नहीं देता था उसका संसार बस मंदिर की वह छोटी सी मूर्ति थी जिसके साथ वह बातें करता था और उसके साथ खेलता था। वह सबसे कहता था कि मेरे कान्हा मुझसे बात करते हैं जो केवल मैं ही सुन सकता हूं बाकी लोग नहीं सुन सकते हैं। उसकी मां उसको काम करने के लिए कहती कि श्याम कभी खेती–बाड़ी में हाथ बंटा लिया कर, तुझे भगवान रोटी नहीं देंगे। परन्तु श्याम मुस्कुरा कर कहता कि अगर भगवान ने ब्रह्माण्ड बना सकते हैं तो मेरे लिए दो रोटी नहीं बना सकते।
इस प्रकार समय बीतता गया और और श्याम भी अब बड़ा हो गया था। वह अभी भी कोई काम नहीं करता था और हर समय मन्दिर में ही पड़ा रहता था। श्याम के पिता को लम्बी बीमारी ने जकड़ लिया। उसके घर की हालत पहले से भी ज्यादा बद्तर हो गई थी। सारे खेत सूख गए थे और गायों ने भी दूध देना बन्द कर दिया था। घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था। श्याम की मां की आंखों में हर रात आंसू होते थे लेकिन श्याम के चेहरे पर वही विश्वास की चमक बनी रहती थी। एक दिन मां ने श्याम से पूछा कि हम सब दुःख में हैं और तू भगवान से इतना प्रेम करता है तो फिर वह तेरी मदद क्यों नहीं करते। तब श्याम ने धीरे से कहा कि हे मां! मदद हो रही है बस हमें उसको देखने की दृष्टि नहीं मिली है अभी। उसकी बात सुनकर मां चुप हो गई।
वह रोज की तरह मन्दिर गया लेकिन उस दिन कुछ अलग था। वह खाली हाथ था, मां के कहने पर वह भगवान का भोग लड्डू भी नहीं ला सका। फिर भी उसने भगवान से कहा कि आज कुछ भी नहीं है मेरे पास, लेकिन मैं तुझे अपना समय दूंगा, अपने आंसू दूंगा, तू चाहे तो उन्हें स्वीकार कर लेना। इतना कहकर वह मूर्ति के पास बैठकर धीरे–धीरे रोने लगा। रोते हुए भी उसकी आंखों में कोई शिकायत नहीं थी बस श्री कृष्ण के लिए प्रेम था। कुछ समय बाद उसकी मां को तेज बुखार हो गया, गांव के वैध ने देखकर बताया कि एक विशेष जड़ी–बूटी और दवा तुरंत चाहिए वरना मां की जान को खतरा हो सकता है। दवा की कीमत पच्चीस रुपए थी। श्याम के पास एक भी पैसा नहीं था। उसने गांव में सबसे मदद मांगी परन्तु किसी ने भी उसकी मदद नहीं की। श्याम निराश हो कर टूटे कदमों से मन्दिर पहुंचा और श्री कृष्ण की मूर्ति के आगे लेट गया। उसकी आंखे भरी हुई थीं और उसका हृदय भी बहुत व्याकुल था। उसने भगवान से कहा कि हे भगवान्! तू मेरा सखा है ना? मेरा भाई है ना? आज मेरी मां को बचा ले, तेरे चरणों में सबकुछ अर्पण है।
श्याम ने कहा कि अगर मां को कुछ हो गया तो मैं भी नहीं बचूंगा। इस प्रकार थककर श्याम वहीं मूर्ति के आगे सो गया। अगली सुबह सूरज की किरण जब मन्दिर में पड़ी तो श्याम की नींद खुल गई। उसने देखा कि मन्दिर की सीढ़ियों पर एक छोटा कपड़े का थैला रखा है। श्याम ने धीरे से उस थैले को खोला तो उसमें पच्चीस रुपए रखे थे और एक छोटी सी पर्ची रखी थी। उस पर्ची पर लिखा था "श्याम मां को दवाई दे दो! तुम्हारा मुरलीधर; यह देखकर श्याम की आंखों से आंसू बहने लगे और वह दौड़कर वैद्य के पास गया और उनसे कहकर मां को दवाई दिलवाई। चमत्कारिक रूप से मां की तबियत कुछ ही देर में सुधरने लगी। वैद्य ने कहा कि श्याम यह तो भगवान की कृपा लगती है, इतनी जल्दी किसी को आराम नहीं आता। पूरे गांव में यह बात आग की तरह फैल गई। कुछ लोग श्रद्धा से भर गए तो कुछ लोग उल्टी बातें करने लगे। कुछ लोग श्याम पर इल्जाम लगाने लगे कि इसने मन्दिर से पैसा चोरी किया है और कहता है कि भगवान ने पैसा दिया है।
श्याम किसी की भी बात का कोई जवाब नहीं देता था और नियमपूर्वक मन्दिर में जाकर श्री कृष्ण भगवान की भक्ति में लगा रहता था। वह पहले की ही तरह भगवान से बातें करता था जैसे कि कुछ हुआ ही ना हो। उसके विश्वास में जरा भी कमी नहीं आई थी। एक रात को तेज आंधी चलने लगी और आसमान में बिजली चमकने लगी। पूरे गांव में हड़कंप मच गया। मन्दिर की छत का एक हिस्सा टूटकर गिर गया। श्याम को जैसे ही मालूम हुआ वह भागता हुआ मन्दिर जा पहुंचा। उसने देखा कि श्री कृष्ण जी की मूर्ति पर मलबा गिरा है। यह देखकर श्याम घबरा गया और कांपते हाथों से मलबा हटाने लगा। मलबा हटाने के बाद वह मूर्ति से लिपटकर रोने लगा कि तू तो मेरा सखा है, मेरा सबकुछ है, तुझपर कुछ भी कैसे गिर सकता है। तूने तो मुझे हर बार बचाया है आज तुझको चोट आई, ये नहीं होना चाहिए था। ऐसा कहते हुए उसके आंखों से लगातार आंसू बहते जा रहे थे।
देखते–देखते मन्दिर के अन्दर एक दिव्य प्रकाश फैल गया जिसको देखकर वहां पर मौजूद लोगों की आंखे चुंधिया गईं। श्याम ने जब अपनी आंखें खोली तो उसके सामने स्वयं भगवान श्री कृष्ण खड़े थे। पीतांबर पहने, सिर पर मोर मुकुट और हाथ में बांसुरी थी। श्याम को देखकर वो ऐसे मुस्कुरा रहे थे जैसे बरसों बाद किसी प्रियजन से मिलने आए हों। यह देखकर श्याम भौचक्का रह गया और रोता हुआ उनके चरणों में गिर गया। श्री कृष्ण भगवान ने उसे उठाकर अपने गले से लगा लिया और बोले कि श्याम तेरी भक्ति ने मुझे बांध लिया। तेरे प्रेम में ना तो दिखावा है, ना कोई मांग है बस समर्पण है। तू जब भूखा था तब भी तूने मुझसे कोई शिकायत नहीं की। जिस किसी ने भी तुझे बेइज्जत किया तूने उनको क्षमा कर दिया। तूने कभी भी मेरा साथ नहीं छोड़ा इसलिए अब मैं कभी तुझे अकेला नहीं छोडूंगा। यह सुनकर श्याम कुछ भी बोल नहीं पाया उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। श्री कृष्ण भगवान ने उसकी कलाई पर एक चांदी का कड़ा बांधा और कहा कि हे श्याम! जब भी तू मुझे याद करेगा मैं तेरे पास रहूंगा। चाहे तू मुझे देख सके या नहीं। इतना कहकर श्री कृष्ण भगवान अंतर्ध्यान हो गए। श्याम ने कभी कोई सांसारिक कार्य नहीं किया। वह मन्दिर में रहकर भगवान की सेवा करता, फूल चढ़ाता, दिया जलाता था और गांव वालों को प्रेम और विश्वास की शिक्षा देता था। अब वही लोग जो उसे चालाक और पागल कहकर उसका मजाक उड़ाते थे उसके चरणों में बैठकर पूछते थे कि श्याम हमें भी बताओ कि ऐसा प्रेम हम सबको कैसे मिले?
उनकी बातें सुनकर श्याम कहता कि भगवान मूर्ति में नहीं हमारे प्रेम में बंधे होते हैं। अगर उनको सच्चे दिल से पुकारोगे तो वे दौड़े चले आएंगे। श्याम की यह कथा धीरे–धीरे दूसरे गांवों तक पहुंचने लगी। साधु–संत भी उस गांव में आकर रहने लगे और उस मन्दिर में बैठकर ध्यान करने लगे। अब तो वह मन्दिर श्याम धाम कहलाने लगा। कहा जाता है कि आज भी वहां हर रात्रि को मधुर बांसुरी की आवाज आती है और मन्दिर में कोई अदृश्य प्रकाश दिखता है। श्याम ने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक भक्ति की ही सांस ली। कहते हैं कि जब उसकी अंतिम सांसे चल रही थीं तो उसने बस इतना कहा कि कन्हैया मैं आ रहा हूं और मुस्कुराते हुए अपनी आंखें बंद कर लीं। यह एक कथा नहीं है आस्था है। यह कथा विश्वास की की। शक्ति है। जिसे श्याम ने जिया और श्री कृष्ण जी ने निभाया।