Bindayak Ji ki Kahani

 Bindayak Ji Ki Kahani


विष्णु जी जब लक्ष्मी जी से विवाह करने जा रहे थे तो उन्होंने सारे देवताओं को आमंत्रित किया। जब सभी देवता इक्कठे हो गए तो सभी देवता कहने लगे कि हम केवल एक शर्त पर बारात में चलेंगे अगर आप गणेश जी को ना ले चलें। विष्णु जी के पूछने पर सबने कहा कि गणेश जी साथ ले चलने से हमारी बेइज्जती हो जायेगी, क्योंकि इसे तो एक मन मूंग, सवा मन चावल, खूब सारा घी नाश्ता करने के लिए चाहिए और खाने के लिए दोबारा चाहिए। इसके सूंड और लम्बे–लम्बे कान और ऊंचा माथा देखकर सभी लोग हमारा मजाक बनायेंगे, इसको साथ लेकर जाकर क्या करना है। देवताओं ने कहा कि इसको देखकर कुण्डिनपर की नारियां शरमा जायेंगी। इसको तो घर की रखवाली करने के लिए यहीं छोड़ देते हैं।

ऐसा कहकर सभी देवता भगवान विष्णु जी की बारात में सम्मिलित हो कर चले गए। सबके जाने के बाद नारद जी वहां आए और उन्होंने गणेश जी से कहा कि सभी देवताओं ने तुम्हारा अपमान किया है और तुम्हे घर की रखवाली करने के लिए भी छोड़ गए हैं। तुम्हें साथ ले जाने से बारात अच्छी नहीं लगती इसीलिए तुम्हे अपने साथ नहीं ले गए। गणेश जी बोले कि अब क्या करें! तब नारद जी ने कहा कि तुम धरती थोथी कर दो, गणेश जी ने नारद जी के बताए अनुसार वैसा ही किया जिसकी वजह से भगवान विष्णु जी के रथ का पहिया धरती में घंस गया। सारे देवताओं ने मिलकर निकालने की बहुत कोशिश की लेकिन पहिया नहीं निकल पाया। सभी जब थक गए तो किसी ने कहा कि बढ़ई को बुला कर लाओ। बढ़ई को बुलाकर लाया गया तो बढ़ई ने पहिए को हाथ लगाते ही कहा –जय बिन्दायक जी! जय गणेश जी! इस पर देवता बोले कि तूने बिन्दायक जी को क्यों याद किया? तब बढ़ई बोला कि बिन्दायक जी को याद किए बिना कोई भी कार्य नहीं होता। तब सब कहने लगे कि हमने तो बिन्दायक जी को घर पर ही छोड़ दिया है इसी कारण हमारा पहिया धंस गया। सभी देवता बिन्दायक जी को बुलाने के लिए वापस गए तब वह बोले कि आप सबने मेरा अपमान किया है इसलिए मैं नहीं जाऊंगा। फिर सबके मनाने पर गणेश जी रिद्धि–सिद्धि के साथ विवाह में सम्मिलित हुए। विष्णु भगवान और माता लक्ष्मी का विवाह संपन्न हुआ और सभी खुशी खुशी घर वापस आ गए।

बिन्दायक जी महाराज! जैसा आपने भगवान के कार्य सिद्ध किए इसी प्रकार सभी के कार्य सिद्ध करना। बोलो बिंदयायक महाराज की जय! बोलो गणेश जी की जय!


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