वशिष्ठ ऋषि कहने लगे कि हे राजा दिलीप! बहुत से जन समूह सहित अच्छोद सरोवर में स्नान करके सुखपूर्वक मोक्ष को प्राप्त हो गए। तब लोमश ऋषि कहने लगे कि संसार रूपी इस राजा तीर्थ को सब श्रद्धापूर्वक देखो। यहां पर तैंतीस करोड़ देवता आकर आनंदपूर्वक रहते हैं। यह अक्षय वट है जिनकी जड़े पाताल तक गई हैं। मार्कण्डेय ऋषि प्रलय के समय भगवान इसी अक्षय वट का आश्रय लेते हैं। यही शिव जी की प्रिय भगवती भागीरथी है जिसकी सिद्ध लोग सेवा करते हैं।
यह गंगा स्वर्ग के हेतु पताका है। इसके जल को पीकर मनुष्य पाप से मुक्त हो जाते हैं। हे मुनि! सभी प्राणी इस नदी को यमुना से मिली हुई पाते हैं। इसका संगम बड़े पुण्य से प्राप्त होता है। इसके स्नान से जन्म और मृत्यु रूपी दावानल से कोई नहीं तपता है परन्तु ज्ञान प्राप्त करने से मुक्त हो जाता है। यहां पर स्नान करने से सभी मनुष्य बिना ज्ञान के भी मुक्त हो जाते हैं। इसलिए ब्रह्मा जी ने यहां पर यज्ञ करने की इच्छा की थी।
इसी संगम में भगवान विष्णु जी ने भी स्त्री प्राप्ति की इच्छा से स्नान करके लक्ष्मी जी को प्राप्त किया था। यहीं पर त्रिशूल धारी शिव जी ने त्रिपर दैत्य को मारा था। प्राचीन काल में यहीं पर उर्वशी स्वर्ग से गिरी थी। उसके बाद स्वर्ग पाने की इच्छा से यहां पर ही उसके स्नान करने से नहुष कुल के राजा ययाति ने वंशधर पुत्र प्राप्त किया था। यहां पर इंद्र ने प्राचीन काल में धन की इच्छा से स्नान किया था और माया से कुबेर के सब धन को प्राप्त किया था। प्राचीन काल में नारायण तथा नर ने हजारों वर्ष तक प्रयाग में निराहार रहकर उत्तम धर्म किया था। यहां से जैगाषव्य सन्यासी ने महादेव जैसी शक्ति वाले से विजय पाई थी तथा अणिमा आदि योग के अति दुर्लभ ऐश्वर्य प्राप्त किए थे। इसी श्रेत्र में तपस्या करने से श्री भारद्वाज जी सप्त ऋषियों में शामिल हुए थे।
जिस–जिस ने भी यहां स्नान किया उन सबको स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इसलिए हमारे विचार से तुम त्रिवेणी में स्नान करो। इस स्नान से पहले किए हुए तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जाएंगे और सम्पूर्ण वैभवों को प्राप्त हो जाओगे। ऋषि के इस प्रकार के वचन को सुनकर सब त्रिवेणी में स्नान करने लग गए। त्रिवेणी में स्नान करने से सबकी पिशाचता नष्ट हो गई। शाप से विमुक्त होकर सभी ने अपना शरीर धारण कर लिया। वेदनिधि ने अपनी संतान को देखकर प्रसन्नचित होकर लोमश ऋषि को संतुष्ट किया और कहा कि आपके अनुग्रह से ही सब श्राप से विमुक्त हुए। अब आप इन बालकों के योग्य धर्म को कहिए। लोमश जी ने कहा कि इस युवा ने वेदों का अध्ययन समाप्त कर लिया है।
लोमश जी ने कहा कि अब इन कन्याओं के प्रीतिपूर्वक कर कमलों को ग्रहण करें। तब लोमश ऋषि और अपने पिताजी की आज्ञा से इस ब्रह्मचारी ने पांचों कन्याओं से विवाह किया। जिसकी वजह से इन कन्याओं के सारे मनोरथ पूर्ण हो गए। जिस किसी के घर में लिखा गया यह माहात्म्य पूजा जाता है वहां नारायण ही पूजे जाते हैं। पुष्कर तीर्थ में, प्रयोग में, गंगासागर में, देवालय में, कुरूक्षेत्र में तथा विशेष करके काशी में इसका पाठ अवश्य करना चाहिए। पुष्कर तीर्थ में ग्रहण के अवसर पर इसके पाठ का दुगना फल मिलता है और मरने के बाद वैष्णव पद प्राप्त होता है।