Suryadev Bhagwan Ka Dahina Ghoda.

सूर्यदेव भगवान का दाहिना घोड़ा

बहुत समय पहले की बात है। किसी राज्य में एक बहुत ही न्याय प्रिय राजा थे । राजा के राज्य में सबकुछ था, धन वैभव की कोई कमी नहीं थी। उनके राज्य में प्रजा भी बहुत खुश थी। लेकिन उस राजा की कोई संतान नहीं थी। इस कारण राजा-रानी बहुत ज्यादा दुःखी रहते थे। राजा और रानी ने संतान प्राप्ति के लिए हर तरह का दान- धर्म, धार्मिक अनुष्ठान, जप-मंत्र, व्रत और पूजा-पाठ किए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब राजा-रानी दोनों ही बुढ़ापे की और बढ़ते लगे थे। बुढ़ापे की ओर बढ़ते हुए राजा-रानी दिन-रात यही सोचते रहते थे कि हमारे मरने के बाद हमारे इतने बड़े राज्य का क्या होगा ? इस राज्य का वारिस कौन बनेगा ? राजा-रानी ने इसी चिंता में खाना पीना भी छोड़ दिया था।

एक दिन राजा के यहां एक साधु भिक्षा मांगने के लिए आया। रानी जब साधु को भिक्षा देने के लिए जाती है तो साधु रानी को उदास देखकर पूछता है कि रानी जी आप इतनी उदास क्यों हैं। साधु के पूछने पर रानी रोते हुए सारी बातें साधु को बताती हैं। थोड़ी देर कुछ सोचने के बाद साधु कहता है कि रानी साहिबा आप आप चिन्ता मत कीजिए, आपकी सन्तान प्राप्ति की इच्छा अवश्य पूरी होगी। आपको एक पुत्र रत्न की प्राप्ति अवश्य होगी परन्तु वह केवल चौदह वर्ष तक ही आपके पास रह पायेगा। इससे ज्यादा कुछ देना मेरे बस में नहीं है। साधु ने अपनी झोली से थोड़ी सी भभुति निकाल कर रानी को दी और कहा कि आप और राजा जी दोनों इसको आधा–आधा खा लेना। जल्दी ही आप के घर में एक सुन्दर बालक का जन्म होगा। साधु के जाने के बाद रानी ने सारी बातें राजा को बताईं। राजा और रानी ने सोचा कि चलो कम से कम चौदह साल ही उन्हें सन्तान का सुख भोगने को मिलेगा। दुनिया उन्हें निसंतान तो नहीं कहेगी। यही सोचकर राजा और रानी ने साधु की दी हुई भभूति को ग्रहण किया और फिर दोनों पूरी निष्ठा के साथ प्रजा की देखभाल करने लगे। कुछ समय बाद रानी गर्भवती हो जाती हैं तो राजा रानी बहुत खुश हो जाते हैं। समय आने पर रानी एक सुन्दर बालक को जन्म देती हैं, पूरे राज्य में खुशी की लहर दौड़ जाती है। राजा ने बहुत धूमधाम से अपने बेटे का नामकरण किया। राजकुमार की कुण्डली देखने के लिए सबसे विद्वान पंडित को बुलाया गया। कुण्डली देखने के बाद पण्डित जी बहुत चिंतित हो जाते हैं और राजा से कहते हैं कि हे महाराज! आपके पुत्र की आयु केवल चौदह वर्ष ही लिखी है। राजा और रानी को तो यह बात पहले से ही मालूम थी। राजा कहते हैं कि ईश्वर की जो इच्छा होगी वही होगा। राजा रानी बहुत प्यार से राजकुमार की परवरिश करने लगते हैं। उसकी हर इच्छा पूरी करते हैं और जी जान से उसको प्यार करते हुए दिन व्यतीत करने लगते हैं।

जब राजकुमार पढ़ने की उम्र में आता है तो एक अच्छे गुरु से उसकी शिक्षा, राजशास्त्र, शस्त्र विद्या, घुड़सवारी आदि विद्या में पारंगत कराते हैं। जब राजकुमार की आयु बारह वर्ष की हो जाती है तो एक सुशील राजकन्या से उसका विवाह करा देते हैं। राजा रानी, राजकुमार की शादी के बाद खुशी खुशी रहने लगते हैं, ऐसे ही दो साल और बीत जाते हैं। अब राजकुमार चौदहवें साल में चल रहा है, एक दिन राजकुमार ने राजा से कहा कि पिताजी मैं अपने राज्य को घूमकर देखना चाहता हूं। अभी तक मैंने अपने राज्य में कुछ भी नहीं देखा है। राजा रानी राजकुमार की बात से चिंतित हो जाते हैं क्योंकि उन्हें मालूम था कि अब कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है। परन्तु ये सब बातें राजकुमार को बता नहीं सकते थे इसलिए राजा ने खुश होकर कहा कि बेटा ये राज्य तो आगे चलकर तुम्हे ही संभालना है इसलिए तुम्हे इसको अवश्य देखना चाहिए। राजा ने कहा कि तुम जाओ परन्तु तुम कहां जा रहे हो, और क्या कर रहे हो, यह बात अपनी पत्नी को कभी नहीं बताना। राजकुमार राजा से कहता है कि ठीक है पिताजी जैसा आपने कहा है मैं वैसा ही करूंगा। राजकुमार दिन भर अपनी पत्नी के साथ रहता है और रात को पत्नी के सोते ही ठीक बारह बजे बिस्तर से उठ कर बाहर चला जाता है। सुबह होने से पहले ही वह वापस लौट कर फिर से सो जाता है। ऐसा बहुत दिनों तक चलता रहता है।

अब राजकुमार के चौदह वर्ष पूरे होने में कुछ दिन ही बचते हैं कि एक रात को उसकी पत्नी रात में जग जाती है और देखती है कि राजकुमार अपने बिस्तर पर नहीं है। वह पूरे महल में राजकुमार को ढूंढती है लेकिन उसका कुछ पता नहीं चलता है। सुबह जब देखती है तो उसका पति अपने बिस्तर में सोया मिलता है। इसी तरह कई दिनों तक लगातार वह अपने पति को रात में बिस्तर से गायब हो कर सुबह अपने बिस्तर में सोते हुए पाती है। परन्तु वह राजकुमार से कुछ भी नहीं पूछती है और चिन्ता की वजह से खाना पीना छोड़ देती है। उसके मन में आता है कि इस बारे में अपने पति से पूछे लेकिन कहीं वह नाराज न हो जाए इस लिए कुछ नहीं पूछती है। चिन्ता करने की वजह से छोटी रानी बहुत दुबली पतली हो जाती है। छोटी रानी को हमेशा एक बूढ़ी मालिन फूल देने के लिए आती थी। उस बुढ़िया का ध्यान छोटी रानी पर जाता है। एक दिन वह उससे पूछती है कि बेटी, तुम्हें किस बात का दुःख है ? तुम इस तरह सूखती क्यों जा रही हो? उस पर रानी कहती है कि अम्मा मैं ये बात किसी को नहीं बताई है, परन्तु तुम्हे बता रही हूं, पिछले कुछ दिनों से रात को राजकुमार उठकर कहीं चले जाते हैं। मैं क्या करूं किससे कहूं यह बात मुझे समझ नहीं आ रही है।

मालिन छोटी रानी से कहती है कि बेटी तू परेशान मत हो, मैं तुम्हें एक उपाय बताती हूं। आज रात को तुम सोना मत। जब तुम्हारा पति उठकर जाने लगे तो उसके पीछे पीछे जाकर देखना कि वह कहां जाता है। छोटी रानी ने कहा कि ठीक है अम्मा मैं आज रात ऐसा ही करूंगी। लेकिन रात में छोटी रानी को नींद आ जाती है और राजकुमार चला जाता है। दूसरे दिन मालिन फूल देने आती है तो पूछती है कि क्या देखा? छोटी रानी कहती है कि मैं सो गई थी इस वजह से नहीं देख पाई। मालिन कहती है कि आज रात को तुम अपनी उंगली में एक जख्म करना, उसपर थोड़ी सी मिर्च छिड़क लेना, उससे तुम्हें बहुत जलन होगी और उस पीड़ा से तुम्हें रातभर नींद नहीं आएगी। रानी कहती है ठीक है और वैसा ही करती है। लेकिन रात को उसे फिर से नींद आ जाती है। दूसरे दिन फिर से बूढ़ी मालिन आती है और पूछती है कि बेटी रात को पता चला कि राजकुमार कहां जाते हैं? तो छोटी रानी बताती है कि वह सो गई थी। अब मालिन कहती है कि आज अपने जख्म को थोड़ा और बड़ा कर देना और उसके ऊपर ज्यादा सी लाल मिर्च डाल देना उसकी जलन से तुम्हे नींद नहीं आयेगी। छोटी रानी फिर से अपनी उंगली में जख्म करती है और उसमें ज्यादा सी मिर्च भर लेती है, आज उसको ज्यादा दर्द हो रहा है तो उसे नींद नहीं आती है। रात को ठीक बारह बजे राजकुमार रोज की तरह बिस्तर से उठ कर जाने लगता है तो वह उसका रास्ता रोककर खड़ी हो जाती है। छोटी रानी राजकुमार से पूछती है कि आप रोज कहां और किससे मिलने के लिए जाते हैं? राजकुमार उससे कहता है कि मैं तुम्हे नहीं बता सकता कि मैं कहां जाता हूं। लेकिन छोटी रानी जिद करती है तो राजकुमार कहता है कि अगर मैंने तुम्हे बता दिया कि मैं कहां जाता हूं तो तुम मुझे दोबारा देख नहीं पाओगी। छोटी रानी पर तो जिद सवार थी वह बोली कि कोई बात नहीं!आप मुझे दोबारा ना मिल पाओ लेकिन आज मैं यह जानकर रहूंगी कि आप रोज रात को कहां जाते हैं। रानी की जिद के आगे राजकुमार बेबस हो जाता है और वह सोचता है कि अब जो भी होगा उसे मैं रोक तो नहीं सकता। राजकुमार थोड़े से चावल को मंत्रों से सिद्ध करके अपनी पत्नी को देता है और कहता है कि तुम इन चावलों को अपने दोनों हाथों की मुट्ठी में पकड़ना!पहले तुम दाहिने हाथ की मुट्ठी का चावल मेरे ऊपर फेंकना, तुम्हे पता चल जाएगा कि मैं कौन हूं! उसके बाद बायें हाथ की मुट्ठी में पकड़े चावल मेरे ऊपर फेंकना तब मैं जैसा अभी हूं वैसा ही तुम्हे मिल जाऊंगा। राजकुमार ने छोटी रानी को सचेत किया कि यदि तुम बायें हाथ के चावल मेरे ऊपर फेंकना भूल गईं तो मैं तुम्हे फिर कभी नहीं मिल पाऊंगा। अभी भी सोच लो! छोटी रानी ने कहा कि मैं नहीं भूलूंगी। इतना कहकर रानी ने दाहिने हाथ में पकड़े चावल राजकुमार के ऊपर फेंक दिए, उसके चावल फेंकते ही राजकुमार एक सफेद रंग के घोड़े में बदल जाता है और रानी के देखते ही देखते वह तेजी से दौड़ने लगता है। रानी आचंभित होकर घोड़े को देखती है और बायें हाथ में पकड़े हुए चावल को फेंकना भूल जाती है। उसके देखते ही देखते घोड़ा दौड़ता हुआ महल से बाहर निकल जाता है और रानी की आंखों से ओझल हो जाता है।

अब छोटी रानी के पास पछताने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है। वह रोते–रोते अपने आप को कोसती हुई किसी तरह से रात बिताती है। सुबह उठते ही राजा–रानी को जब इस बात का पता चलता है तो वह दोनों दुःखी होकर बीमार हो जाते हैं। राजा–रानी हर दिन अपने पुत्र के वापस लौट कर आने की राह देखते हैं इसी तरह एक महीना और फिर राह देखते देखते छह महीने बीत जाते हैं। हर जगह राजकुमार को ढूंढा जाता है लेकिन उसका कोई पता नहीं चलता है। छोटी रानी को इस बात का बहुत पछतावा होता है कि उसकी जिद की वजह से राजा–रानी का इकलौता पुत्र और उसका पति आज पता नहीं कहां गायब हो गया है। एक दिन वह मन में सोचती है कि उसकी वजह से ही राजकुमार गायब हुआ है अब मैं ही उसे ढूंढ कर वापस लाऊंगी ऐसा सोचकर वह राजा–रानी के पास जाती है और उनसे कहती है कि मैं अपने पति की तलाश करने जाना चाहती हूं अतः आप लोग मुझे इस बात की आज्ञा दे दीजिये। राजा और रानी उसे जाने की आज्ञा दे देते हैं और कहते हैं कि बेटी तुम्हे जहां भी जाना है जाओ हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। हमारी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि मेरा बेटा वापस मिल जाए। रानी ने एक सेठानी का रूप धारण किया और अपने साथ कुछ दास और दासी, तथा नौकरों को लेकर अपने राज्य की सीमा पर पहुंच जाकर एक भोजनालय खोल लेती है। छोटी रानी भोजनालय में आने वाले सब यात्रियों को मुफ्त खाना देती है और उनसे कहती है कि खाना खाने के बदले में उनको उसे कोई अजीब बात बतानी पड़ेगी जो उन्हे देखने में अजीब लगी हो। इस प्रकार से वहां पर आने वाला हर व्यक्ति अपनी तरफ से कोई बात बताता जो उनको देखने में अजीब सी लगी हो। बहुत से लोग अपनी तरफ से झूठ बोल कर भी वहां से मुफ्त में खाना खा कर चले जाते थे। रानी को अभी तक कोई भी ऐसी बात पता नहीं चलती है, इसी तरह काफी दिन बीत जाते हैं।

उधर महल में जो बूढ़ी मालिन छोटी रानी को फूल देने आती थी, उसके एक बेटा बहू और एक छोटा सा पोता था। उस मालिन के बेटा और बहू रोज सुबह काम करने के लिए चले जाते थे तो बच्चे को संभालने की जिम्मेदारी मालिन की होती थी। मालिन को पान खाने की आदत थी। एक दिन पान में लगाने के लिए चूना खत्म हो गया था। चूना तैयार करने के लिए सीपियों को भूनना था। सीपियों को भूनने के लिए गोबर के कंडे लेने वह चरवाहे के मैदान में गई, वहां पर बहुत सारे कंडे थे। कंडे बीनते बीनते अंधेरा हो गया और जब वह घर पहुंची तो उसके बेटा बहू वापस आ चुके थे। वह दोनों गुस्से में मालिन से बोले कि तुम बच्चे को अकेला छोड़ कर कहां चली गई थीं वो कितना रो रहा था अकेले घर में। बूढ़ी ने बताया कि वह कंडे लेने के लिए गई थी तो बेटे ने कहा कि अब दोबारा से बच्चे को अकेला छोड़ कर मत जाना। मालिन ने उस समय तो ठीक है कह दिया लेकिन दूसरे दिन वह ये बात भूल गई और फिर से कंडे लेने के लिए बच्चे को छोड़ कर चली गई। शाम को जब वह वापस आई तो आज फिर से बच्चा रो रहा था और उसके बेटा बहू काम से वापस आ चुके थे। जब बेटे ने मां को आते देखा तो गुस्से से लाल हो कर उसने मालिन को बुरा भला कहा और घर से निकाल दिया। बेचारी मालिन रात भर घर के बाहर अंधेरे में बैठी रही और सुबह होते ही कंडे बीनने के लिए मैदान में निकल गई। उस दिन जैसे मालिन पर कंडे इकट्ठा करने का भूत सवार हो गया था। कंडे इकट्ठा करते हुए कब अंधेरा छा गया उसे पता ही नही चला। जब बुढ़िया को ध्यान आया उस समय बहुत रात हो गई थी और गांव का रास्ता भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था। किसी तरह से अंधेरे में रास्ता ढूंढते हुए वह आगे बढ़ने लगी। मालिन मैदान से बाहर निकल भी नहीं पाई थी कि उसने देखा कि पता नहीं कहां से एक कपिला गाय गले में घंटी बजाते हुए छन छन करती हुई उस मैदान में आ गई। गाय को देखकर मालिन ने सोचा कि मैं अगर इस गाय के पीछे पीछे जाउंगी तो अपने गांव वापस पहुंच जाउंगी। मालिन अंधेरे में गाय के पीछे पीछे चल देती है। गाय एक एक करके छह मैदान पार करने के बाद सातवें मैदान में पहुंच जाती है। मालिन को बहुत अचरज होता है तभी वह देखती है कि गाय के सामने एक बड़ा सा पत्थर पड़ा है, गाय उस पत्थर पर जैसे ही अपनी सींग मारती है वह पत्थर दूर हट जाता है और नीचे जाने के लिए सीढ़ियां दिखाई देने लगती हैं।

गाय उछलती कूदती उन सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी तो मालिन ने भी फौरन उसकी पूंछ को पकड़ लिया और गाय के साथ सीढ़ियों से नीचे आ जाती है। अंदर पहुंच कर मालिन देखती है कि वह पाताल लोक में पहुंच गई है। वह गाय की पूंछ छोड़कर इधर उधर देखने लगती है। उसे यह देखकर बहुत आचंभा होता है कि वहां पर सब जगह जगमगाहट हो रही है। सब जगह दीये जल रहे हैं। तभी एक तेज रोशनी गाय के ऊपर पड़ती है और गाय के रोशनी के नीचे आते ही अपने आप ही उसके गले में सांकल पड़ जाती है। उसी समय कोई गाय का दूध निकालने लगता है, लेकिन दूध निकालने वाला कोई भी उसे दिखाई नहीं देता है। बेचारी बूढ़ी मालिन यह सब देख कर बहुत डर जाती है और एक कोने में छुप जाती है। वहां पर हर तरफ उजाला ही उजाला था। वहां पर जो कुछ भी हो रहा था वह बहुत आश्चर्यजनक था। तभी मालिन ने देखा कि पता नहीं कहां से अचानक से एक सफेद रंग का बहुत सुंदर घोड़ा वहां पर आ जाता है। वहां पर दो कुंड थे, उसमें से एक कुंड में उस घोड़े ने छलांग लगाई और फिर से ऊपर आ गया। अब वह घोड़ा एक राजकुमार बन गया था। राजकुमार बनते ही उसने दूसरे कुंड के पानी में स्नान किया और फिर वहां पर रखे हुए नए कपड़े पहने और फिर वहां पर पड़े हुए एक सुंदर पलंग पर बैठ गया। उसके बैठते ही अपने आप ही पकवानों से भरी हुई थाली और दूध की प्याली तथा पान सुपारी उसके सामने आ गए। उसके सामने एक दीया जल रहा था। राजकुमार ने खाना खा कर दूध पिया और फिर पान सुपारी खाकर बिस्तर पर लेटने से पहले सूर्यदेव को स्मरण करके अपने सामने जल रहे दीए से पूछा कि हे दीपंकर! मुझे बताओ कि मेरे माता–पिता क्या कर रहे हैं? दीए ने बताया कि आपके माता–पिता बेटे के दुःख में डूबे हैं। राजकुमार फिर से पूछता है कि मेरा राज्य कौन संभाल रहा है? दीए ने उत्तर दिया कि आपका राज्य प्रधान संभाल रहा है। राजकुमार पूछता है कि मेरी पत्नी क्या कर रही है? दीया बताता है कि आपकी पत्नी राज्य के बाहर एक भोजनालय चलाती है और सबको मुफ्त में खाना खिला कर उनसे अजीब घटना के बारे में पूछती है। राजकुमार ने दीए से कहा कि ठीक है और फिर सो गया। मालिन यह सब देख कर अपनी भूख प्यास भूल जाती है और आगे क्या होगा यह सोचकर वहीं छुपी रहती है लेकिन उसके बाद कोई और घटना घटित नहीं होती। जब सुबह होती है तो राजकुमार सो कर उठता है और फिर से पहले वाले कुंड में छलांग लगा देता है और घोड़ा बनकर कुंड से बाहर आ जाता है। बाहर आने के बाद वह बहुत फुर्ती से पाताल लोक से निकल जाता है। इसके बाद पिछली रात की तरह से कोई उस गाय का दूध निकालने लगता है। जैसे ही दूध दुहना बंद होता है गाय के गले में पड़ी सांकल अपने आप खुल जाती है। सांकल खुलते ही गाय तेजी से ऊपर की तरफ भागने लगती है तो मालिन भी फौरन गाय की पूंछ पकड़ लेती है और फिर ऊपर आ जाती है। गाय ऊपर पहुंचते ही जंगल की ओर भाग जाती है।

अब मालिन यह बात जल्दी से जल्दी किसी को बताने के लिए उतावली हो जाती है कि तभी उसे ध्यान आया कि राज्य की सीमा पर जो भोजनालय है वहां पर कोई भी अजीब बात बताने वाले को मुफ्त में भोजन करवाया जाता है। मालिन ने सोचा कि मैं यह बात अब उस औरत को ही बताऊंगी यह विचार आते ही वह फौरन ही राज्य की सीमा पर बने उस भोजनालय की ओर चल पड़ी। भोजनालय पहुंचकर बूढ़ी मालिन ने वहां पर टंगे नगाड़े को जोर–जोर से बजाना शुरू कर दिया। नगाड़े को इतनी तेजी से बजता हुआ देखकर छोटी रानी बहुत खुश हो जाती है कि शायद आज कोई बहुत बड़ी और आश्चर्यजनक घटना को लेकर आया है। छोटी रानी फौरन ही सिपाहियों को भेजती है कि जाओ और जाकर देखो कि कौन आया है? और जो कोई भी आया हो उसको सम्मान के साथ ले आओ। सिपाही जब नगाड़े के पास पहुंचे तो देखा कि एक बुढ़िया लगातार नगाड़ा बजा रही है। उन्होंने बुढ़िया से पूछा कि क्या बात है जो तुम इतना जोर–जोर से नगाड़ा बजा रही हो? मालिन ने कहा कि कुछ नहीं बेटा! यहां मुफ्त में खाना मिलता है इसलिए मैं नगाड़ा बजा रही हूं कि शायद मुझे भी मुफ्त में खाना पीना मिल जायेगा। सिपाहियों ने कहा कि हां अम्मा यहां खाना पीना सब मुफ्त में दिया जाता है लेकिन उसके लिए तुमको कोई नई और अजीब बात बतानी होगी। मालिन ने कहा कि मुझे एक अजीब सी बात मालूम है, यह सुनकर सिपाही उसे अंदर लेकर आए और उसका अच्छी तरह से स्वागत सत्कार किया। उसको प्यार से बैठकर खूब सारे व्यंजन परोसे। मालिन बहुत भूखी थी, उसने भर पेट खाना खाया और फिर सिपाहियों ने उसे एक नई साड़ी पहनने के लिए दी। मालिन ने जल्दी से वह साड़ी लेकर पहन ली। उसके बाद सिपाही उसको लेकर छोटी रानी के पास पहुंचे तो बुढ़िया और रानी दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया। दोनों एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश हो गईं। दोनों बहुत देर तक आपस में इधर–उधर की बातें करती रहीं उसके बाद छोटी रानी ने मालिन से पूछा कि अम्मा अब बताओ तुमने क्या नई और अजीब बात देखी है? मालिन कहने लगी कि बेटा मैंने कोई भी अजीब बात नहीं देखी है मेरे पास खाने के लिए पैसे नहीं थे इसलिए मैने नगाड़ा बजाया था। छोटी रानी ने कहा कि अम्मा तुम घबराओ नहीं जो भी बात हो मुझे बता दो, मैं किसी को भी तुम्हारा नाम नहीं बताऊंगी। लेकिन बुढ़िया फिर भी आनाकानी करने लगी कि बेटा मैंने कुछ भी नया नहीं देखा है। अब छोटी रानी ने कहा कि अम्मा अगर तुम मुझे वह नई बात जो तुम्हे मालूम है बताओगी तो मैं जीवन भर तुम्हारा ख्याल रखूंगी और तुम्हे अपने साथ रानी माता की तरह ही रखूंगी। इसपर मालिन रानी को मैदान में उसने क्या देखा था बताने को तैयार हो गई। उसने मैदान से लेकर पाताल लोक तक जो कुछ भी देखा था वह सब छोटी रानी को विस्तार से बता दिया। अब रानी को यह यकीन हो गया था कि वह राजकुमार उसी का पति है जो घोड़ा बनकर महल से चला गया था। रानी मालिन से कहने लगी कि अम्मा तुम मुझे अभी उस जगह पर ले चलो। बुढ़िया ने कहा कि बेटी मैं तुम्हे वहां पर नहीं ले जा सकती हूं, वह पाताल लोक है और वहां पर सांप रहते हैं। अगर किसी ने तुमको देख लिया तो तुम्हारी जान खतरे में पड़ जायेगी। लेकिन रानी ने उसकी बात नहीं सुनी और उससे वहां ले चलने की जिद करने लगी। बुढ़िया ने कहा कि ठीक है मैं तुम्हे वहां पर ले चलूंगी लेकिन आज नहीं कल चलूंगी, क्योंकि वहां शाम को ही जा सकते हैं।

अगले दिन दोपहर को मालिन छोटी रानी को लेकर मैदान में गई और एक जगह छुपकर गाय के आने की राह देखने लगी। जैसे ही अंधेरा हो गया गाय हमेशा की तरह वहां पर आ गई। मैदान में पड़े पत्थर पर जैसे ही उसने अपना सींग मारा तो पत्थर हट गया और वहां से नीचे उतरने का रास्ता खुल गया। जैसे ही गाय कूदती हुई सीढ़ियां उतरने लगी मालिन ने रानी से कहा कि बेटी जल्दी से आगे बढ़ो, हमें गाय की पूंछ पकड़ कर नीचे जाना है। दोनों ने जल्दी से गाय की पूंछ पकड़ी और नीचे उतर गईं। मालिन जिस कोने में पहली बार छिपी थी उसी कोने में रानी को लेकर छुप गई। थोड़ी देर बीतते ही वहां पर सब कुछ पहले की ही तरह से होने लगा। सब कुछ रोशनी से जगमगाने लगा, गाय के गले में अपने आप सांकल पड़ गई और कोई उसका दूध दुहने लगा। पहले की तरह ही एक सफेद घोड़ा वहां आया और उसने दोनों कुंडों में से एक कुंड में छलांग लगाई और राजकुमार बनकर ऊपर आ गया। उसके बाद दूसरे कुंड में स्नान करने के बाद नए कपड़े पहन कर पलंग पर बैठ गया। उसके बैठते ही उसके सामने पकवानों से भरी थाली आ गई और साथ में दूध और पान सुपारी भी आ गई। राजकुमार ने भोजन किया फिर दूध पीकर पान सुपारी खाया और बिस्तर पर लेटने से पहले उसने सूर्यदेव को स्मरण किया। उसके बाद उसने अपने सामने जलते हुए दीए से पूछा कि हे दीपंकर! मेरे माता–पिता क्या कर रहे हैं? आज दिया कोई उत्तर नहीं देता और बुझने लगता है। राजकुमार को संदेह हो जाता है कि कुछ ना कुछ तो घटित हुआ है। ऐसा सोचकर वह उदास हो जाता है लेकिन फिर यह सोचकर कि जो कुछ भी होना है हो जाने दो, और बिस्तर पर लेट जाता है।

अब छोटी रानी अपने आप पर काबू नहीं कर पाती है और दौड़कर अपने पति के सामने आ जाती है और उसके पैर पकड़ने के लिए आगे बढ़ने लगती है। राजकुमार फौरन ही अपनी पत्नी को पहचान लेता है और पीछे हटकर चिल्लाने लगता है कि नहीं –नहीं! मुझे छूना मत! नहीं तो सर्वनाश हो जायेगा! राजकुमार की बात सुनकर छोटी रानी रुक जाती है और हाथ जोड़कर उससे अपनी गलती की माफी मांगने लगती है। रानी कहती है कि हे स्वामी! मुझे क्षमा कर दीजिए! मुझे आपसे मना करने के बाद वो बात नहीं पूछनी चाहिए थी। लेकिन अब तो मुझे उसकी सजा मिल चुकी है मैं अपनी भूल स्वीकार करती हूं। कृपा करके अब आप अपने घर चलिए, आपके चले जाने के कारण आपके माता–पिता दोनों ने बिस्तर पकड़ लिया है। आपके बिना आपकी प्रजा भी बहुत दुःखी है। राजकुमार ने कहा कि एक बार तुम गलती कर बैठी हो! लेकिन अब दोबारा से अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो तो जो मैं तुम्हे दिखाई दे रहा हूं वह भी नहीं दिखूंगा। यह सुनकर जोर जोर से रोने लगी और अपना सर जमीन पर पटकने लगी। राजकुमार को उसे इस तरह से रोते हुए देखकर दया आ गई, वह रानी से कहने लगा कि यदि तुम मुझे वापस पाना चाहती हो, तो तुम्हे एक काम करना होगा। काम बहुत कठिन है लेकिन तुम्हे उसको अकेले ही करना पड़ेगा। रानी बोली कि हे स्वामी! आप मुझे बताओ? चाहे जितना भी कठिन होगा मैं अवश्य करूंगी। तब राजकुमार बोला कि इस पाताल से ऊपर जाते ही तुम्हे एक घना जंगल नजर आएगा। ऐसे ही छह जंगल तुम्हे और मिलेंगे, इन छहों जंगलों को पार करने के बाद तुम्हे सातवां जंगल मिलेगा। वह जंगल सबसे घना है। उस जंगल में पहुंचने पर तुम्हे जंगल के बीचोबीच एक पीपल का पेड़ दिखाई देगा। उस पेड़ के आसपास की जगह पर पत्ते, कांटे, जटाएं आदि से ढक चुकी है। उस जगह पर बाघ, शेर, भालू, सांप, बिच्छू आदि तरह–तरह के जीव जंतु, पशु पक्षी अपना डेरा डाले हुए हैं। तुम्हे उन सबको वहां से भगा कर उस जगह को साफ करना है। उस स्थान को अच्छी तरह गोबर से लीपकर पवित्र बनाना है और फिर रंगोली बनाकर उसको सजाना है। उसके बाद वहां धूप, दीप,कपूर, अगरबत्ती जला कर फूल और कुमकुम से पेड़ के तने की पूजा करनी है। दूध–दही से बने चावल का भोग लगाना है। लेकिन ध्यान रहे यह सब कुछ तुम्हे बारह बजने से पहले करना है, और बारह बजने के समय तुम्हे उस जगह पर बैठकर सूर्य भगवान का ध्यान करना है। ठीक बारह बजे सूर्यदेव का रथ वहां उतरेगा। सूर्यदेव यह सब देख कर खुश हो जायेंगे और पूछेंगे कि किसने यह सब किया है! सामने आओ, जिसने भी ये किया है मैं उसे मुंहमांगा फल दूंगा। तब तुम सूर्य भगवान के सामने जाना और उनसे उनके रथ का दाहिना घोड़ा वरदान में मांग लेना। उसके बाद मैं तुम्हे मिल जाऊंगा। इतनी बात कहकर राजकुमार अपने पलंग पर सो गया। रानी और मालिन सुबह होने का इंतजार करने लगीं। जैसे ही सुबह हुई उसी दिन की तरह से कोई गाय का दूध दुहने लगा और फिर गाय का सांकल खुल गया और गाय जब ऊपर जाने लगी तो दोनों उसकी पूंछ पकड़ कर बाहर आ गईं।

बाहर आने के बाद रानी ने कहा कि अम्मा अब तुम जाओ, यहां से अब मैं अकेले ही आगे जाऊंगी। तुम भोजनालय वापस जाओ और वहीं पर रहो। बुढ़िया के जाने के बाद रानी जंगल में जाकर राजकुमार की बताई हुई जगह को ढूंढने में लग गई। ढूंढते–ढूंढते रानी को वह वह जगह मिल जाती है और वह वहां से सभी को भगा देती है और फिर उस जगह की सफाई करने के बाद उस जगह को गोबर से लीपकर पवित्र बना देती है और फिर अपने भोजनालय वापस आ जाती है। दूसरे दिन सुबह होने से पहले ही रानी उस स्थान पर पहुंचती है और फिर से सफाई करने के बाद उस जगह पर इत्र छिड़क कर सुगंधित करने के बाद सुन्दर सी रंगोली बनाकर, धूप दीप, अगरबत्ती जला कर उस जगह को पवित्र करके पूजा की सब सामग्री और दूध दही का चावल बनाकर रखती है और फिर सूर्य भगवान का ध्यान करने के लिए बैठ जाती है। जैसा कि राजकुमार ने बताया था, दोपहर को ठीक बारह बजे सूर्य भगवान का रथ उस पीपल के पेड़ पर आकर रुक गया। सूर्य भगवान ने रथ से नीचे देखा तो बहुत प्रसन्न हुए और बोले कि जिस किसी ने भी यह काम किया है आज मेरे सामने आ कर जो कुछ भी मांगेगा, मैं उसे दूंगा। रानी ध्यान में बैठी थी, जैसे ही उसने ये शब्द सुने तो फौरन दौड़कर उनके सामने आ गई और हाथ जोड़कर उनको प्रणाम करके बोली कि हे भगवन्! वह मैं ही हूं! मैंने ही इस जगह को साफ किया है। सूर्य भगवान ने कहा कि मैं तुमसे प्रसन्न हूं तुम जो भी मांगना चाहती हो मांगो! इसपर रानी ने हाथ जोड़कर कहा कि हे भगवन्! मुझे आपके रथ का दाहिना घोड़ा चाहिए! सूर्य भगवान ने कहा कि तुम कुछ और मांग लो वो घोड़ा मैं तुम्हे नहीं दे सकता। मेरे रथ में बारह घोड़े हैं तुम उनमें से कोई और घोड़ा मांग लो। लेकिन यह दाहिना घोड़ा मैं तुम्हे नहीं दे सकता हूं। लेकिन छोटी रानी अपनी बात पर अड़ी रही कि नहीं भगवान्! मुझे तो केवल आपका दाहिना घोड़ा ही चाहिए। आप मुझे देना चाहते हैं तो अपना दाहिना घोड़ा ही दीजिए वरना मैं आपके कदमों में सिर पटककर अपनी जान दे दूंगी। अब तो सूर्य भगवान धर्म संकट में पड़ गए कि उसे वचन दिया है कि जो कुछ भी मांगोगी वही दूंगा। वह अपने वचन से पलट भी नहीं सकते थे इसलिए बोले कि ठीक है, मैने तुम्हे वह घोड़ा दिया। लेकिन वह घोड़ा तुम्हे यहां नहीं मिलेगा , उसे लेने के लिए तुम्हे पाताल में जाना होगा। रानी ने हाथ जोड़कर कहा कि हे भगवन्! उन्हे पाने के लिए पाताल तो क्या मैं कहीं भी जा सकती हूं। रानी को वचन देकर सूर्य भगवान चले गए और रानी जंगल से निकल कर अपने भोजनालय में आ गई।

भोजनालय पहुंचकर रानी उस मालिन को साथ में लेकर फौरन उस मैदान में पहुंच गई और शाम होने का इंतजार करने लगीं। जल्दी ही अंधेरा हो गया तो वह कपिला गाय फिर से वहां आई और सींग मारकर पाताल जाने वाले रास्ते का पत्थर हटाया। रानी और मालिन दोनों उसकी पूंछ पकड़ कर नीचे आ गईं। पाताल में पहुंचने पर वहां पर सारी घटनाएं पहले की तरह ही घटित होने लगीं। जब राजकुमार खाना खाने के लिए बैठा तो आज एक नई बात हुई, आज खाने के लिए दो–दो थाली, दो–दो प्याली दूध और दो–दो पान सुपारी उसके सामने आए। राजकुमार ने अपने हिस्से की थाली का खाना खाया, दूध पिया और पान सुपारी खाकर सोने से पहले सूर्य भगवान का स्मरण करके दीए से पूछा कि हे दीपंकर! मेरे माता–पिता क्या कर रहे हैं? दीए ने जवाब दिया कि वह दोनों आपके वियोग में मरने की स्थिति में पहुंच चुके हैं! यह सुनकर राजकुमार की आंखों से आंसू टपकने लगे। उसने फिर दीए से पूछा कि मेरा राज्य कौन चला रहा है? दीए ने उत्तर दिया कि आपका राज्य प्रधान चला रहा है और वह सबकुछ हड़प चुका है। यह सुनकर राजकुमार को बहुत जोर का गुस्सा आने लगा। वह बोला कि मेरी पत्नी क्या कर रही है? इस बार दिए ने कोई जवाब नहीं दिया। अब रानी अपने को रोक नहीं पाई और रोती हुई अपने पति के सामने आ गई। राजकुमार रानी के बोला कि घबराओ नहीं अब मैं तुम्हे वापस मिल गया हूं। यह सुनकर रानी ने खुश होकर पूछा कि आप सच कह रहे हैं, अब आप फिर से घोड़ा तो नहीं बनेंगे। राजकुमार ने हंसकर कहा नहीं, मैं अब दोबारा घोड़ा नहीं बनूंगा, सूर्य भगवान ने मुझे तुमको वापस दे दिया है। तुमने मुझे पाने के लिए इतने कष्ट उठाए हैं इसलिए सूर्यदेव ने मुझे सदा के लिए घोड़े के जन्म से मुक्त कर दिया है। इतना कहकर राजकुमार ने रानी को अपने गले से लगा लिया। सुबह होते ही जैसे ही गाय की सांकल खुली, वैसे ही राजकुमार,रानी और मालिन उसकी पूंछ पकड़ कर बाहर आ गए। वहां से वह सब पहले भोजनालय पहुंचे और वहां का सारा सामान लोगों में बांट दिया। राजकुमार रानी और मालिन को लेकर जब महल में पहुंचा तो उसको वापस आया देखकर प्रधान घबरा गया। राजकुमार ने प्रधान को कैदखाने में डाल दिया। उसके बाद वह अपने माता–पिता के पास पहुंचा और उन्हे देखकर राजकुमार की आंखों से आंसू बहने लगे। राजा–रानी मरणासन्न अवस्था में थे, राजकुमार को आया देख कर खुशी के मारे दोनों रोने लगे। ऐसा मिलन देख कर सभी की आंखों से आंसू बहने लगे। राजा और रानी ने राजकुमार को अपने गले से लगाया और फिर प्यार से राजकुमार को सहलाने लगे। उसके बाद से दोनों की तबीयत में एकदम से सुधार होने लगा। कुछ दिनों में ही इन दोनों का स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक हो गया। राजकुमार के वापस लौट आने की खबर सुनकर प्रजा खुशी से राजमहल के सामने इकट्ठा हो गई, राजकुमार ने सभी को खुशी खुशी दर्शन दिए और उन्हें आश्वासन दिया कि आज के बाद उन्हें कोई भी दुःख नहीं पहुंचेगा। राजा ने अपने पुत्र का राज्याभिषेक करके उसको सिंहासन पर बैठा दिया और छोटी रानी को महारानी का दर्जा दे दिया। राजा रानी खुशी खुशी भगवान का ध्यान करने में लग गए। बूढ़ी मालिन को छोटी रानी ने जैसा कि कहा था कि राज माता बना कर रखेंगी, अपने महल में ही रख लिया। इस प्रकार से सभी खुशी खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगे।


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